काल सर्प दोष
उज्जैन मध्य प्रदेश में स्तिथ एक प्राचीन धार्मिक देव नगरी है | उज्जैन माँ शिप्रा के तट पर स्तिथ हे | उज्जैन में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक दक्षिणमुखी ज्योतिलिन भी हे , दक्षिणमुखी ज्योतिलिंग भगवान महाकालेश्वर के नाम से विश्व विख्यात हे , उज्जैन को बाबा महाकाल व विक्रमादित्य की नगरी से भी जाना जाता हे | उज्जैन में तीन गणपति विराजमान में व दो शक्ति पीठ भी हे उज्जैन को भगवान मंगलनाथ की जन्म भी मन गया हे उज्जैन के श्मशान को तीर्थ मन हे इसे चक्रतीर्थ में नाम से जाना जाता हे , उज्जैन एक धार्मिक देव नगरी होने के कारण यहाँ पर होने वाली पूजा का भी विशेष महत्व हे | उज्जैन में होने वाली पूजा में मुख्य पूजा काल सर्प दोष पूजा , मंगल दोष पूजा , पितृ दोष पूजा आदि हे |
कुंडली में कब बनता हे काल सर्प दोष
काल सर्प दोष किसी जातक की कुंडली के उत्पन एक अशुभ नकारात्मक दोष हे | ज्योतिष के अनुसार जब की जातक की कुंडली के सभी ग्रह राहु व् केतु के मध्य आ जाते हे तो उस समय जातक की कुंडली में जो योग बनता हे उसे काल सर्प दोष कहा गया हे |
काल सर्प दोष के प्रकार :
ज्योतिष शस्त्र में काल सर्प दोष के 12 प्रकर बताये हे
- वासुकि कालसर्प दोष,
- शंखपाल कालसर्प दोष,
- पद्म कालसर्प दोष
- महापद्म कालसर्प दोष
- तक्षक कालसर्प दोष
- कर्कोटक कालसर्प दोष
- शंखचूड़ कालसर्प दोष
- विषधर कालसर्प दोष
- शेषनाग कालसर्प दोष
- घातक कालसर्प दोष
- कुलिक कालसर्प दोष
- अनन्त कालसर्प दोष
कदाचित राहु और केतु नामक आसुरी प्रवित्ति के ग्रहो की स्थिति को बदलना संभव नहीं है, किन्तु दोनों ही ग्रह देव गुरु बृहस्पति दैत्य गुरु शुक्राचार्य का सम्मान करते है, और जीवन के किसी समय में अगर बृहस्पति का और शुक्र का प्रभाव पूजन अथवा अनुष्ठान से बढ़ जाता है तो काल सर्प दोष की तीब्रता बहुत हदतक कम हो जाती है, और ऐसी स्थिति में मनुस्य का उथ्थान प्रारम्भ हो जाता है, इस प्रकार यह सम्भव है की पूजन एवं अनुष्ठानो के माध्यम से कालसर्प योग नामक दोष का निवारण सम्भव है। ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है। कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे।
उज्जैन नगरी को महाकाल की नगरी के साथ साथ वेदो, पुराणों और शास्त्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिस्ट प्रभाव है जो की इस नगरी की किसी विशेषता के कारण मिला है, यहाँ पर कुम्भ का आयोजन होना और क्षिप्रा नदी का होना, ये सभी अपने आप में विशिस्ट है, साथ ही जब पुण्य प्रभाव के कारण संसार में तीर्थो का वरीयता दी जा रही थी उसमे उज्जैन को सभी तीर्थो में तिल भर ज्यादा सम्मान दिया गया है इस कारण यहाँ पर कालसर्प योग निवारण पूजा का अनुष्ठान विशेष फलदायी और लाभकारक है
शास्त्रों और वेदों में पूजन करवाने के समय इस प्रश्न का विशेष महत्त्व है की पूजन करने वाला किस भाव से पूजन कर रहा है, भगवान शिव सदा से ही भाव के भूके है, इसलिए जिस किसी भी ब्राह्मण से आप अनुष्ठान करवाए वह परम सात्विक, निरहंकारी, किसी का बुरा न चाहने वाला, सदाचारी, ब्रह्ममुहूर्त में उठकर भगवान शिव का ध्यान करने वाला और विशेष रूप से शाकाहारी हो, ऐसे ब्राह्मण आपको उज्जैन में अवश्य मिल जायेगे।
कालसर्प एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं। कालसर्प योग के प्रमुख भेद | कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं।
1. अनन्त कालसर्प योग
2. कुलिक कालसर्प योग
3. वासुकी कालसर्प योग
4. शंखपाल कालसर्प योग
5. पद्म कालसर्प योग
6. महापद्म कालसर्प योग
7. तक्षक कालसर्प योग
8. कर्कोटक कालसर्प योग
9. शंखचूड़ कालसर्प योग
10. घातक कालसर्प योग
11. विषधार कालसर्प योग
12. शेषनाग कालसर्प योग
उज्जैन नगरी को वेदो, पुराणों और शास्त्रों में विभिन्न नमो से जाना जाता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिस्ट प्रभाव है जो की इस नगरी की किसी विशेषता के कारण मिला है, यहाँ पर कुम्भ का आयोजन होना, महाकाल की नगरी होना, और क्षिप्रा नदी होना, ये सभी अपने आप में विशिस्ट है, साथ ही जब पुण्य प्रभाव के कारण संसार में तीर्थो का वरीयता दी जा रही थी उसमे उज्जैन को सभी तीर्थो में तिल भर ज्यादा सम्मान दिया गया है इस कारण यहाँ पर कालसर्प योग निवारण पूजा का अनुष्ठान विशेष फलदायी और लाभकारक है
जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता न मिल रही हो, मन में उथल – पुथल रहती हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प दोष हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्युकी कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में कैसा कालसर्प है ये विशुध्द पंडित जी बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये और कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प दोष का निदान एवं निराकरण कराये।
काल सर्प दोष निवारण :
- प्रत्येक सोमवार को शिवमंदिर में शिवलिंग का जल व् दूध से अभिषेक करना |
- 108 बार ॐ नमः शिवाय का जप करना , नागा नागिन का जोड़ा शिवलिंग को अर्पित करना ,
- 108 महाम्रत्युन्जय मंत्र का जप करना , आदि
काल सर्प दोष पूजा उज्जैन में करने का महत्त्व :
विश्व में महाकालेश्वर व नाग स्थली को उज्जैन (अवंतिका ) नगरी में मुख्य स्थान प्राप्त हे | प्राचीन काल में उज्जैन को नाग सथली भी बोलै जाता हे | इसलिए उज्जैन में होने वाली पूजन महामर्तुन्जय जप , मंगल दोष पूजा , काल सर्प दोष पूजा , पितृ दोष , ग्रह शांति दोष पूजा व अन्य धार्मिक पूजा का महत्त्व अधिक हे , परन्तु उज्जैन प्राचीन काल में नागस्थली होने के कारण काल सर्प दोष निवारण के लिए मुख्य हे |
प्राचीन काल में उज्जियन को भैरव तीर्थ व नागतीर्थ भी कहते थे | कहा जाता हे की राजा जन्मेजय में नागो के विनाश के लिए महा यज्ञ का आयोजन किया | जरकतारू के पुत्र आस्तिक मुनि ने इस महा यज्ञ को रोका था और महा विनाशी यज्ञ का स्थान परिवर्तन किया था | और उसे उज्जैन में स्थान दिया गया था |
इसलिए उज्जैन की गयी काल सर्प दोष की पूजा आती फल दायी होती हे |